Thursday, March 7, 2013

परदे पर: तलाश



                     तलाश में इंस्पेक्टर सर्जन सिंह शेखावत (आमिर खान) का भूत-पिशाच, टोने-टोटके इत्यादि पर विश्वास न होने के बावजूद भी वह इन्हीं मिथकों का शिकार हो जाता है। इसमें मध्यमवर्गीय पति-पत्नी के बीच के तनावों, अवसादों को बेहद ही प्रभावी तरीके से दिखाया गया है। भाग-दौड़ भरी जिंदगी में प्रेम व हँसी-खुशी के अभाव में व्यक्ति का सामना एकाकीपन से  हो जाता है तब वह कई प्रकार के मानसिक अवसादों से घिरने लगता है और उसे जीवन बेहद नीरस सा लगने लगता है। अरमान कपूर की हत्या के कारण की तलाश वास्तव में वर्तमान युग में मर चुकी मानवीय भावनाओं के कारण की तलाश ही है अरमान कपूर के मौत पर इन्वेस्टिगेशन करते समय जब शेखावत रोजी के साथ अकेले कमरे में अपनी चारित्रिक दृढ़ता का परिचय देता है तब दर्शक मायूस हो जाते हैं। लगातार नानवेज खाने वाले के सामने यदि किसी दिन हरी-साग भाजी परोस दी जाय तो उसे वह जड़ी-बूटी सा लगता ही है। कुछ का यह मानना है कि इसका अन्त सही नहीं है क्योंकि अन्त प्रेतात्माओं की कथा कहने लगती है लेकिन आज भी मध्यवर्गीय समाज में एसे ही मिथकीय घटनाओं में विश्वास करने के कारण कई मानसिक अवसाद के शिकार हो जाते हैं। ’तलाश’ भारतीय यथार्थ में खो चुकी मानवीय प्रेम भावनाओं को उद्घाटित करता है जिससे इसमें कामेडी का अभाव है जो हालाकि अखरता है। तैमूर के रोल में नवाजुद्दीन सिद्दकी का अभिनय काफी अच्छा है।
                                                                Dec.7,2012