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Monday, February 21, 2011
नाच
थिरक उठती है वह नर्तकी-सी
जब बजाता है जोकर
शास्त्रीय संगीत के
ढोलकिया-सा।
थमते नहीं हैं पांव
सीता-वियोग में भटकते
राम की तरह।
काली है वह, दुर्गा भी
स्वयं शक्ति स्वरूपा-सी।
नहीं किसी भरतमुनि का
शासन इन पर
नाच दिखाते हैं दोनों
बिना टिकट
फिल्मी धुनों पर।
फिर हथेलियाँ
घुमा-घुमाकर
बारहखड़ी सीखने वाले हाथ
फैल जाते हैं-
ट्रेन में सफर करने वाले
मुसाफिरों के
सिक्कों पर।
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