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Sunday, September 19, 2010
रुपये उड़ते हैं !

महंगाई के इस दौर में आजकल मुझमें भी नेता बनने की धुन सवार हो गयी है, लेकिन इसलिये नहीं कि देश में व्याप्त भुखमरी, भ्रष्टाचार व गरीबी जैसी समस्याओं को मिटाकर देशवासियों की नज़रों में एक महान् राजनीतिज्ञ का आदर्श उपस्थित कर धन्य हो जाऊँ बल्कि मैं तो इसलिये नेता बनना चाहता हूँ क्योंकि आजकल मेरी पाचन शक्ति बढ़ गयी है जिससे हर समय पेट में चूहे दण्ड पेलते रहते हैं । अत: क्षुधा शांत करने के लिये ही इस महँगाई में भी अपनी सार्थकता को बढ़ाना चाहा लेकिन यहाँ तो भाई दो वक्त की रोटी नसीब नहीं होती तो क्या करूँ, भले ही पेट में चूहे दण्ड पेलें या फिर कृशकाय ही दिखाई दूँ ।
अपने लोकतांत्रिक देश में नेता बनने के लिये वैसे तो किसी डिग्री की आवश्यकता नहीं होती केवल अपनी वाणी में हास्य का समावेश स्थूलकाय के साथ थोड़ा तोंद होना ही काफी है । अपनी वाणी में विनोद का पुट भरने के लिये मैं इंटरनेट जैसी बला के माध्यम से हास्य-व्यंग्य की रचनायें व शायरियाँ पढ़ने लगा हूँ और उन्हें तोड़-मरोड़कर याद भी रखने लगा हूँ । अब रही बात स्थूल काया बनाने की तो इस विषय पर मन ही मन विचार करते हुये जब मैं शाम को सड़क पर टहलने निकला तब मैनें एक लालाजी पर दृष्टि गड़ायी जो अपने भरे हुये तोंद पर हाथ फेरते हुये टहल रहे थे उन्हें अपने तोंद पर हाथ फेरते देख मेरे मन में उत्सुकता और बैचेनी बढ़ने लगी और स्वमेव ही मैं बोला -
लाला तुम किस चक्की का खाते हो ?
इस छ्ह छटांक के राशन में भी तोंद बढ़ाये जाते हो !
मेरी इस प्रश्नवाचकता पर वे मुस्कुराये और बड़े इत्मीनान से आत्मीय भाव के साथ दो टूक में ही जबाब देते हुये कहे - बेटा! आजकल रुपया उड़ रहा है उसे पकड़ने की कला सीखो । मैंने भी उनसे अपनी नेता बनने की दबी हुई इच्छा प्रकट कर दी और कहा- लाला, जरा इन उड़ते हुये रुपयों को पकड़ने की कला बताइये । लाला बोला- यह विद्या ऐसे ही नहीं मिलती इसके लिए पहले तुम अपनी हाथ का मैल साफ करो । मैं अपनी जेब टटोला और उड़ते हुए रुपयों को पकड़ने की चाहत में अपना जेब साफ करते हुए लाला को सौ रुपये थमा दिया । अब प्रसन्न मुद्रा में लाला से कहा, तो लाला! अब मुझे भी इस कला में पारंगत कर दीजिए । लाला बोला - बेटा यही तो उड़ते हुए रुपयों को पकड़ने का तरीका है । ऐसा कहकर लाला हँसता हुआ चला गया । मैं अवाक् खड़े ही रह गया और अब लाला की हँसी भी शनै: शनै: विलुप्त होने लगी । सड़क किनारे सूखे बबूल की शाखाओं पर चहकते हुये चिड़ियों का कलरव भी अब शांत हो चुका था और मेरे मन में उड़ते हुए रुपयों को पकड़ने का गुर सीखने की ललक व नेता बनने की हसरत भी समाप्त हो गयी ।Monday, April 12, 2010
"A Stitch In Time Saves Nine"
Kaushalya was an old Lady who lived a small hut with her 19 years old son Rahul. They were very poor and almost lived hand to mouth. Rahul was a very lazy fellow and did not like to work much. His Mother used to earn for a living by stitching clothes for people.
One day she noticed that the roof of her hut was leaking. She immediately asked her son to mend it before it was too late. Rahul turned a deaf ear to his Mother’s request and ignored her suggestion.
Rains came along with thunder and storm. The leaky portion of her roof expended and ruined all the materials lying inside the hut. Rahul had to immediately climb up mend the roof. He got all wet and it took him a lot of time to set things right. Most of their possession got ruined and wet. If only he had listened to his mother earlier, he would not have had to take the trouble of mending the roof on this rainy night. One should immediately pay attention to the slightest incident before it becomes a major incident. A stitch in time saves nine.
Search Engine Submission - Akhilesh Gupta Sariya
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